जन्मदिन विशेष: सीएम बनने के बाद भी टूटी झोपड़ी में रहते थे, दोस्त से कोट मांगकर गये थे विदेश
1 min readपटना. एक ऐसा शख्स जो सीएम बनने के बाद भी टूटी झोपड़ी में रहता था. पहली बार विधायक बनने के बाद जब विदेश जाना हुआ तो दोस्त से कोट उधार लिया. बात घोर गरीबी में पले बढ़े बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) की हो रही है. आज उनका जन्मदिन है. जननायक कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को बिहार की राजनीति का पहला सोशल इंजीनियर भी कहा जाता है. कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़ावाद को राजनीति की धुरी बनाया. शासन में आने आठ महीने बाद ही उन्होंने 9 मार्च 1978 को सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था लागू करने की घोषणा की थी.
उनसे जुड़ी कई कहानियां हैं जो बताती है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह अपना जीवन कितनी सादगी से बिताते थे. 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिला के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) का जन्म हुआ था. पिता नाई का काम करते थे. कर्पूरी ठाकुर ने भारत छोड़ो आंदोलन के समय करीब 26 महीने जेल में बिताया था. वह 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो कार्यकाल में वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे.
पहला किस्सा:
जब 1952 में कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) पहली बार विधायक बने थे, उन्हीं दिनों ऑस्ट्रिया जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में उनका चयन हुआ था.लेकिन उनके पास पहनने को कोट नहीं था. दोस्त से कोट मांगा तो वह भी फटा था. कर्पूरी वही कोट पहनकर चले गए. वहां यूगोस्लाविया के प्रमुख मार्शल टीटो ने जब फटा कोट देखा तो उन्हें नया कोट गिफ्ट किया.
दूसरा किस्सा:
साल 1974 कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) के छोटे बेटे का मेडिकल की पढ़ाई के लिए चयन हुआ. पर वह बीमार हो गए. दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में हार्ट की सर्जरी होनी थी. इंदिरा गांधी को मालूम हुआ तो एक राज्यसभा सांसद को भेजकर एम्स में भर्ती कराया. खुद मिलने भी गईं और सरकारी खर्च पर इलाज के लिए अमेरिका भेजने की पेशकश की. कर्पूरी ठाकुर ने कहा, मर जाएंगे, लेकिन बेटे का इलाज सरकारी खर्च पर नहीं कराएंगे. हालांकि बाद में जयप्रकाश नारायण ने कुछ व्यवस्था कर न्यूजीलैंड भेजकर उनके बेटे का इलाज कराया था.
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तीसरा किस्सा:
समस्तीपुर में एक कार्यक्रम में कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को शामिल होना था. हेलीकॉप्टर से वह दूधपुरा हवाई अड्ड़े पर समय पर पहुंचे तो देखा कि न तो जिलाधिकारी आए हैं और न ही कोई अन्य प्रशासनिक पदाधिकारी. तब वह रिक्शे पर बैठे और कार्यक्रम स्थल की ओर चल दिए. रास्ते में जिलाधिकारी मिले तो सिर्फ इतना ही पूछा, बहुत विलंब हो गया, क्या बात है? इस पर जिलाधिकारी ने कहा, कार्यक्रम की तैयारी में ही व्यस्त था. उन्होंने कहा, कोई बात नहीं. फिर उनकी गाड़ी पर बैठ कर कार्यक्रम स्थल आए.
चौथा किस्सा:
बाबू वीर कुंवर सिंह जयंती कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) जगदीशपुर गए थे. वहां से लौटते हुए रास्ते में कार की टायर पंक्चर हो गई. उन्होंने अपने बॉडीगार्ड से कहा कि किसी ट्रक को रुकवाओ उसी पर बैठकर पटना चले जाएंगे. बॉडीगार्ड ने कहा कि लोकल थाने से संपर्क करते हैं, गाड़ी मिल जाएगी तो उससे निकल जाएंगे. फिर, लोकल थाना से उन्हें एक गाड़ी मुहैया कराई और कुछ जवानों के साथ उन्हें पटना के लिए रवाना किया गया.
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