टेलर पिता के पास स्टिक खरीदने के नहीं थे पैसे, मां ने फैक्ट्री में की मजदूरी, आसान नहीं था निशा वारसी के ओलंपिक तक का सफर
1 min readभारतीय महिला हॉकी टीम (Indian Women Hockey Team) ओलंपिक में भले ही कांस्य पदक का मुकाबला हार गई हो, मगर इस टीम ने इस बार ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन किया. महिला हॉकी टीम पहली बार ओलंपिक के सेमीफाइनल में पहुंची. महिला हॉकी (Indian Women Hockey Team) टीम में कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने काफी परेशानियों को झेलकर आज यह मुकाम हासिल किया हैं, इनमें एक नाम है हरियाणा के सोनीपत के रहने वाली निशा वारसी का. निशा वारसी (Nisha Warsi) ने ओलंपिक तक के सफर में काफी परेशानी झेली थी, उनके सफर की कहानी जितनी मुश्किल से भरी है, उतनी है प्रेरणा भी देती है.
एक वक्त था जब टेलर का काम करने वाले निशा (Nisha Warsi) के पिता सोहराब के पास निशा के लिए स्पोर्ट्स शूज व स्टिक खरीदने तक के पैसे नहीं थे. साल 2016 में अचानक निशा वारसी के पिता सोहराब को पैरालिसिस हुआ और वह चारपाई पर आ गए. घर में खाने के लाले पड़ गये. बच्चों की परवरिश के लिये निशा की मां को फोम की फैक्ट्री में काम करना पड़ा. निशा के अलावा परिवार में उनकी दो बहनें नगमा और शाहिस्ता और भाई रेहान भी था. मां की कमाई से ही सारा घर चल रहा था. मां ने इसी कमाई का कुछ हिस्सा निशा पर भी खर्च किया. इसके अलावा मुस्लिम परिवार से आने वाली निशा के सामने कई सामाजिक बाधायें भी थी. इन सबको पार कर निशा ने कड़ी मेहनत की. मेहनत के बाद खेल कोटे से रेलवे में उन्हें क्लर्क पद पर नौकरी मिल गई, जिसके बाद अब वह परिवार का भरण पोषण कर रही हैं.
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2019 में किया इंटरनेशनल डेब्यू:
2018 में पहली बार निशा वारसी (Nisha Warsi) का भारतीय टीम के कैंप के लिये चयन हुआ. निशा ने अपना पहला इंटरनेशनल डेब्यू वर्ष 2019 में हिरोशिमा में FIH फाइनल्स में किया. इसके बाद से निशा अब तक नौ बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. भारतीय टीम की डिफेंडर निशा ने ओलंपिक में अपने डिफेंस से कई गोल बचाये. कई गेंद उनके शरीर पर लगी, मगर निशा मैदान पर डटी रही. आज निशा की इस उपलब्धि पर उनके गांव के साथ- साथ पूरे देश को गर्व है.
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